नव स्वतंत्रता का परचम
गिरी है गाज़ गिरि पर फिर से,आग लगा उपवन में ,
दावानल सा धधक रहा मन, उबले रक्त नयन में |
लाल लहू की धार बही है फिर से भारत भू पर ,
शहीद सपूतों की हुंकार गूँज रही है गगन में |
अब भी नपुंसक सत्ताधारी, मूक अंजान बने हैं,
इनके हाथ शहीदों के गर्म रक्त से सने हैं |
उखाड़ फेंको इन हाथों को, अब पुरुषार्थ जगाओ,
कठपुतली सरकार को अब, लात मार भागाओ |
हद हो गयी कायरता की, कितना नीच बनोगे ?
वोट बैंक की राजनीति में कितना खून पियोगे?
शहीदों के सर कटे पड़े हैं, तुम बने पड़े नामर्द,
जब तेरा सर विक्षत होगा, तब शायद समझोगे |
कमी खल रही लाल- अटल के अतुलनीय पुरुषार्थ की,
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गाँडीवधारी पार्थ की,
भारत रणभूमि में शकुनी खेल रहा है चौपड़,
फूँक रहे सत्ताधारी सब अब रनभेरी स्वार्थ की |
पाक की क्या औकात ,चुटकी में उसे मसल हम जाए,
पर पहले घर के पिशाच से तो छुटकारा पाए,
ख़त्म करें हम इन काले अँग्रेज़ों को भारत से,
नील गगन मे नव स्वतंत्रता का परचम लहराएँ ||
जय हिंद , जय भारत ....
उज्ज्वल कुमार
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