Jai Hind

Desh hamari zindagi, Desh hamari jaan hai,
Desh pe jina, Desh pe marna, Sau janmo ke saman hai...

Tuesday, November 26, 2013

वीर रक्त की ज्वाला

हम नीलकंठ के वंशज, जिसने पिया हलाहल प्याला है,
वीर भरत के अनुचर है हम, जिसे शेर ने पाला है |
वीर सपूत हम राणा के, ना चूका जिसका भाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||

गौरवपूर्ण अतीत हमारा, कुछ तो इसका मान करो,
हम पत्ते और पुष्प तरु के, जड़ का तो सम्मान करो|
सीखो पृथ्वीराज, शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई से,
उखाड़ भुजाएँ राष्ट्रद्रोही के, भारत का उत्थान करो |
जब जब शत्रु ने आँख उठाया, हमने अँधा कर डाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||

हे ! भारत के वीर युवाओं, सुप्त हृदय को जग जाने दो,
अपने लौह रगों की ज्वाला, नयन मे प्रज्वलित हो जाने दो|
फड़क उठे पाषाण भुजाएँ, सिंघनाद सा गर्जन कर दो,
शौर्य भाल पर भारत भू की, धूल से तिलक लग जाने दो |
राष्ट्रधर्म ही जीवन संगिनी, देशप्रेम वरमाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||

चलता जा रहा



अंजाने जीवन के रस्ते मे ,
गुमसुम सा अकेला मैं था,
चलता जा रहा|

खुशी की किरणों वाला सूरज,
उम्मीद की सुबह मे था
ढलता जा रहा |
खुद से शर्मिंदा ,
खुद से हारा,
आँसू भरी आँखों को था,
मलता जा रहा |
मंज़िल से बेख़बर,
खुद से अंज़ान,
ना जाने कहाँ मैं था,
चलता जा रहा |

हर मोड़ पर ठोकर खाया,
कभी बच गया तो रास्ते को ख़त्म पाया,
बदली मैने कितनी राहें ,
दबा के मन की आहें,
पर एक खुशी पाने को,
दिल से मुस्कुराने को,
ये मेरा दिल था,
मचलता जा रहा |

अंजाने जीवन के रस्ते मे ,
गुमसुम सा अकेला मैं था,
चलता जा रहा|