हम नीलकंठ के वंशज, जिसने पिया हलाहल प्याला है,
वीर भरत के अनुचर है हम, जिसे शेर ने पाला है |
वीर सपूत हम राणा के, ना चूका जिसका भाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||
गौरवपूर्ण अतीत हमारा, कुछ तो इसका मान करो,
हम पत्ते और पुष्प तरु के, जड़ का तो सम्मान करो|
सीखो पृथ्वीराज, शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई से,
उखाड़ भुजाएँ राष्ट्रद्रोही के, भारत का उत्थान करो |
जब जब शत्रु ने आँख उठाया, हमने अँधा कर डाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||
हे ! भारत के वीर युवाओं, सुप्त हृदय को जग जाने दो,
अपने लौह रगों की ज्वाला, नयन मे प्रज्वलित हो जाने दो|
फड़क उठे पाषाण भुजाएँ, सिंघनाद सा गर्जन कर दो,
शौर्य भाल पर भारत भू की, धूल से तिलक लग जाने दो |
राष्ट्रधर्म ही जीवन संगिनी, देशप्रेम वरमाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||
वीर भरत के अनुचर है हम, जिसे शेर ने पाला है |
वीर सपूत हम राणा के, ना चूका जिसका भाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||
गौरवपूर्ण अतीत हमारा, कुछ तो इसका मान करो,
हम पत्ते और पुष्प तरु के, जड़ का तो सम्मान करो|
सीखो पृथ्वीराज, शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई से,
उखाड़ भुजाएँ राष्ट्रद्रोही के, भारत का उत्थान करो |
जब जब शत्रु ने आँख उठाया, हमने अँधा कर डाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||
हे ! भारत के वीर युवाओं, सुप्त हृदय को जग जाने दो,
अपने लौह रगों की ज्वाला, नयन मे प्रज्वलित हो जाने दो|
फड़क उठे पाषाण भुजाएँ, सिंघनाद सा गर्जन कर दो,
शौर्य भाल पर भारत भू की, धूल से तिलक लग जाने दो |
राष्ट्रधर्म ही जीवन संगिनी, देशप्रेम वरमाला है,
हमारे रग मे निर्झर बहती, वीर रक्त की ज्वाला है ||